श्री गुरु चरण नमन कर, लेखिनी निज कर धारी |
बायण मात गुण वरणो, जो दायक फल चारि ||
मंदमति मैं सुत तेरो, अपनाओ माँ मोहि |
सुख शान्ति देऊँ सदा, मैं वन्दन करूँ तोहि ||
चौपाई
सूर्य वंश क्षत्रिय जग जाना | गुहिल खाँप तहँ मेरु समाना ||१||
भूप गुहदत्त भये विख्याता | बाणेश्वरी ताही कुलमाता ||२||
आठवाँ वंशज रावल बप्पा | मेवाड़ आन शासन थापा ||३||
ताके वंशज लक्ष्मण राणा | ले लश्कर द्वारिका प्रस्थाना ||४||
पाटण नगर मग मँह आया | तँह कुमारी सों ब्याह रचाया ||५||
बायण माँ मन्दिर तँह सुहाना | जोड़ायत संग आया राणा ||६||
वर-वधु ने शीश झुकाया | बायण माँ ने पुष्प बक्षाया ||७||
सुखद नींद सोया था राणा | सुखद सपना आया सुहाना ||८||
माता बायण ने फरमाया | मेवाड़ धाम मो मन भाया ||९||
मोहि ले चलो अपने साथा | अब पाटण मोहि न सुहाता ||१०||
कर नमन राणा बोला धीमा | माँ! तेरी पूजा कठिन कामा ||११||
कर न सकूँ मैं पूना तोरी | यही दुविधा हैं मात मोरी ||१२||
स्वीकार हैं पूजा साधारण | मेवाड़ मोहि ले चल लक्ष्मण ||१३||
जब जाग्रत भया लक्ष्मण राणा | निज राणी सों सपन बखाणा ||१४||
बनकर बालिका मात आयी | मात बाणेश्वरी झलक दिखायी ||१५||
अब मेवाड़ पधारो माता | भूप ने कहाँ हिया हुलसाता ||१६||
मात प्रतिमा ले भूप आया | कर दरशण कुल जन हरषाया ||१७||
शिशोदा गाँव महल सुहाना | तँह मन्दिर बनवाया राणा ||१८||
गढ़ चित्तौड़ महिमा भारी | जिसकी छटा सबसे न्यारी ||१९||
लक्ष्मण पौत्र हमीर कहाया | बायण मातहिं भक्त सवाया ||२०||
दुर्ग मँह मात मन्दिर सुहाना | जिसे बनाया हम्मीर राणा ||२१||
दरशन तांहि लोग नित आवे | चढ़ा प्रसाद भोग लगावे ||२२||
माँ! क्षत्रियों के कष्ट मिटाओ | विपदा में भी आन बचाओ ||२३||
जिसके हिये में भली भावना | उसकी पुरे मात कामना ||२४||
वर-वधु माँ को ढोक लगावे | माँ! वह जोड़ी सुखी बनावे ||२५||
कर मुंडन शिशु शीश झुकावे | माँ उसे सदा स्वस्थ बनावे ||२६||
शुद्ध भाव से जो गुण गावे | दुःख दरिद्र पास नही आवे ||२७||
भोर भए जो पढ़े चालीसा | उसके घर में रहे न कलेशा ||२८||
शत्रुंहि नाशो बायण माता | तुम हो तीन लोक सुखदाता ||२९ ||
अमित अपार आपकी महिमा | हो अनुभव जब आवे सीमा ||३०||
बायण मात नाम जो जापे | तां सो भूत प्रेत सब कांपे ||३१||
कुलदेवी को कंठ में धारे | बिगड़े काज सकल सुधारे ||३२||
जा पर कृपा मात की होई | सकल पदार्थ करतल होई ||३३||
धन्य हुआ जो दर्शन पाया | मंशा पूरी जिन शीश नवाया ||३४||
माँ की महिमा कही न जाई | अंधा को सब कुछ दर्शाई ||३५||
निर्धन को धन देती माता | पुत्र हीन सुंदर सुत पाता ||३६||
तिथि अष्टम चौदस शुक्ल पक्षा | अवस उपासना करें मात समक्षा ||३७||
जय हो तेरी बायण माता | पूजा अर्चन मुझे न आता ||३८||
भूल-चूक क्षमा करना माता | माँ-बेटे का अटूट नाता ||३९||
माँ की चरण शरण सुखदायी | बड़भागी जन दर्शन पायी ||४०||
|| दोहा ||
सम्बत दो हजार सत्तर, नव रात्रि मधुमास |
बायण मात चालीसा, रचा ‘अल्पज्ञ’ तव दास ||
भूल-चूक कर माफ़, भाव सुमन लें मात |
पूत-कपूत हो जात हैं, मात न होत कुमात ||