श्री बाण माताजी ने महाराणा प्रताप को दिया था चमत्कार “
मित्रो सभी को जय माँ बायण की अरज होवे सा…….महाराणा प्रताप व अकबर की एक कहानी जो मैने पापा हुकुम से सुनी थी, बहुत दिनो से सोच रहा था आप स्भी के साथ शेयर करु, आखिर कर आज शेयर कर ही देता हुँ….बात उन दिनो कि है जब महाराणा प्रताप एवम अकबर के बीच युध्य चल रहा था, ,महाराणा प्रताप अकबर की तलाश मे वनो मे भटकते हुए उज्जैन नगरी मे पहुंच गये वहा वे एक गाँव से गुजर रहे थे तभी वहा एक महिला महाराणा प्रताप को देख कर म आवभगत करती ह तथा महाराणा से निवेदन करती हे किआप मेरे घर पधार कर विश्राम करे, महाराणा काफी थक चुके थे अत:वे उस महिला के घर जाने के लिये तैयार हो गये जब महाराणा वहा पहुँचते है तो महिला महाराणा के लिये बिस्तर लगाती है तथा आराम फरमाने का निवेदन करती हुई कहती है कि आप जैसे महाराणा के चरण मेरे घर पर पडने से मै धन्य हो गई, यह मेरा सौभाग्य है कि आप मेरे घर पधारे…. और निवेदन करती है कि आप काफी थक चुके है और आपको भुख भी लगी होगी अत: मेरा पास के गाँव मे निमंत्रण हे मे वहा जाकर भोजन कर आप के लिये थाल लेकर आती हुँ तब तक आप विश्राम करे मै अभी गयी और अभी आयी……महाराणा की आज्ञा लेकर वह महिला प्रस्थान करने के लिये घर से बाहर निकलती है तथा परकोटे के उपर चढ कर बाज का रुप धारण कर वहा से उड जाती है ।वह महिला पास के गाँव मे शादी समारोह मे पहुँच कर महिला का रुप धारण कर लेती है तथा सभी सामाजिक रीती रिवाज को पुरा कर भोजन ग्रहण करती है व महाराणा के लिये थाल परोसकर वापिस बाज का रुप धारण कर उड जाती है तथा वापिस उसी परकोटे पर पहुच कर महिला का रुप धारण कर लेती है महाराणा प्रताप घर मे आराम करते हुए उस दृश्य को देख रहे थे
(वह महिला डाकिनी/ तांत्रिक थी) ……तथा महाराणा को भोजन परोसकर प्रेम पुर्वक भोजन कराने के बाद महाराणा को पधारने का प्रयोजन पुँछती है तब महाराणा कहते है कि अकबर हाथ धोकर मेरे पिछे पडा है तथा वह मुझे अपने अधीन करना चाहता है लेकिन मुझे उसकी अधीनता स्वीकार नही है व मै अकबर की तलाश मै निकला हुआ हुँ…. वह महिला महाराणा से निवेदन करती है कि यदि आपकी आज्ञा हो तो मै आपको अकबर के पास ले जाकर छोड दु । महाराणा उसकी बात से सहमत हो जाते है तो वह महिला फिर से बाज का रुप धारण कर महाराणा प्रताप को अपने उपर बैठा कर उडती हुई अकबर के तम्बु के उपर पहुँचती है महाराणा वहा देखते है कि वहा तम्बु के चारो ओर कठोर पहरा है व अकबर के सैनिक तम्बु के चारो ओर चक्कर लगा रहे है व अकबर अपनी बेगम के साथ आराम से सो रहा है । महाराणा तम्बु के उपर से छेद कर अकबर के तम्बु मे प्रवेश करते है , अकबर गहरी निन्द मे सो रहा था महाराणा अकबर के समीप जा कर ………..अकबर का वध करने के लिये तलवार उपर उठाते हे तभी अचानक आवाज आती है
ठहर
महाराणा वहा रुक कर चारो तरफ देखते है वहा कोई नही था…….महाराणा फिर से अकबर का वध करने के लिये तलवार उपर उठाते हे तभी फिर से आवाज आती है
ठहर
“अकबर सोतो ओझके जाण सिराणे साप”
महाराणा के फिर से चारो तरफ देखने पर वहा कोई नही था….
महाराणा तिसरी बार अकबर का वध करने के लिये तलवार उपर उठाते हुए सोचते है कि शायद मेरी अंतर आत्मा मुझे इस कार्य को करने के लिये रोक रही है ईसलिये शायद यह आवाज मुझे अनायास ही सुनाई दे रही है व महाराणा मजबुत ईरादे के साथ तिसरी बार तलवार उठाते है तो फिर से ठहर की आवाज आती है……महाराणा ने रुक कर कहा कौन हे तब आवाज आयी हम अकबर के 24 पीर है अकबर ईस समय आराम कर रहा है अत: हम उसकी रक्षा कर रहे है…..उस समय महाराणा प्रताप को क्रोध आता है क्योंकि वो अकबर की कुटनीती से तंग आ चुके थे व भुखे प्यासे वन मे भटक रहे थे व अपने अकेले होने के अहसास पर गुस्से मे कहते है कि तुम अकबर के पीर अकबर की रक्षा कर रहे हो तो मेरी माँ कहाँ गयी……तभी अकबर के पीर ही बोले पिछे मुड कर देख…..
जैसे ही महाराणा पिछे मुडे वहाँ कुलदेवी माँ मौजुद थे और उन्हौने महाराणा से कहाँ कि आप अकबर का वध मत करो सोये हुए व निहत्थो पर वार करना क्षत्रिय धर्म के खिलाफ है आप अपने यहाँ आने की कोई निशानी अकबर के पास छोड जाओ……तब महाराणा अकबर की एक मुंछ काट कर खत लिख कर अकबर के तकिये के निचे रख देते हे कि मै महाराणा प्रताप तेरे पास आया था व अगर मै चाहता तो तेरा वध कर देता लेकिन तुझे चेतावनी दे कर छोड रहा हु तु अपने डेरे समेट ले और यहा से रवाना हो जा…..तब से अकबर रोज निन्द मे महाराणा प्रताप आये उस डर से उचक कर खडा हो जाता तभी से किवन्द्ती है कि
सूर्यवंश रो शुरमों, एक ही पुट अभूत।।
नाम लेय नामी भया, बाज्यां दीवाण एकलिंग।
उण राणा इष्ट जो, वा बायण ने रंग।।
तो मित्रो सार यह है कि जंग कितनी भी बडी हो हम मेहनत, संघर्ष व माँ के आर्शीवाद से नेक रस्ते पर चलते हुए जीत सकते है माँ तो हमेशा हमारी साथ है लेकिन रास्ते हमारे खराब हे…..
भालों अरि चेतक असवारी , बायण चाले संग ।
भोम भूप ने अति प्यारी , राण प्रताप ने रंग ।।
अकबर मारण पाथळ गया , अध् रात आगरा माहि ।
चौबीस पीर चोकिया , बायण आया उण ठाहि ।।
रक्षा कीन्ही पाथळ री , थू सेवक समर लड़ी ।
रक्षा थारी राखसु , पीछे पाथळ मैं खड़ी ।।
आभार : मयूर सिंह जी चुण्डावत ( डूंगरपुर )